नटखट बंदर और बूढ़ी दादी

नटखट बंदर और बूढ़ी दादी

एक समय की बात है एक गांव में एक बूढ़ी दादी रहती थी। वो अपने घर में अकेली रहती थीं। उनके बाल बच्चे नहीं थे। वो अकेले ही दूसरों के खेतों में काम करती थी और जो मिलता था उसी से अपना पेट भरती थीं।

जिस गांव में बूढ़ी दादी रहती थीं उसी गांव में एक नटखट बंदर भी रहता था जोकि खूब शरारत करता था। उसे लोगों को परेशान करने में बड़ा मज़ा आता था। कभी वह किसी दुकान से सामान लेकर भाग जाता था तो कभी किसी बच्चे का खिलौना छीन ले जाता था। रास्ते में आने जाने वाले लोगों का वह सामान भी चोरी कर लेता था।

एक दिन वह बंदर घूमते घूमते एक पेड़ पर चढ़ गया और वहां से बैठ करके लोगों को तंग करने की योजना बनाने लगा। तभी उसकी निगाह सामने ही बने एक झोपड़ी पर जाती हैं जहां पर एक बूढ़ी दादी रोटियां बना रही थीं।


बूढ़ी दादी रोटियां बनाई, दो रोटी खाई और बाकि बची रोटियां वही चूल्हे पर ढक के रख दी ये सोचते हुये कि आकर उसे खाएगी। इसके बाद बूढ़ी दादी रोज की तरह आज भी काम पर चली गयी।

पेड़ पर बैठा नटखट बंदर यह सबकुछ देख रहा था। उसके दिमाग में एक मस्ती सूझी और झट से बूढ़ी दादी के छत पर वो कूद गया। फिर वह चुपके से दादी के घर में घुस गया और दादी ने जो रोटियां अपने लिए बनायी थी, वह उसे सारा खा गया। खाने के बाद उसने दादी के सारे कपड़े और समान इधर उधर बिखेर दिया, और उनका चूल्हा भी तोड़ दिया इसके बाद वो हंसते हुए मस्ती करते हुए वहा से चला गया।

जब शाम को बूढ़ी दादी घर आई तो वह घर का नजारा देख के दंग रह गई। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि ये सब किसने किया होगा। बूढ़ी दादी यों तो बहुत थकी हुई थीं फिर भी हिम्मत करके सारा सामान समेटती हैं। और रसोई भी ठीक करती है। लेकिन देखती है कि रोटी भी नहीं है तो दादी निराश हो कर उस रात ऐसे ही भूखे पेट सो जाती है।

अगली सुबह दादी फिर से रोटियां बनाती है और दो रोटी खाकर बाकी बची रोटियों को रख देती है कि शाम को लौट कर आयेगी तब खायेगी, इसके बाद बूढ़ी दादी काम पर चली जाती है। आज भी नटखट बंदर पेड़ पर ही था। और वह दादी को काम करते हुए देख रहा था। जैसे ही दादी घर से बाहर जाती है वैसे ही वो नटखट बंदर दादी के घर में आ जाता है। कल की ही तरह वो दुबारा सब कुछ वैसे ही करता है। पहले दादी की सारी रोटियां खा जाता है फिर सामान इधर उधर बिखेर देता है और रसोई घर का चूल्हा भी तोड़ देता है।

अब रोज बंदर की ये आदत हो गई थी। बेचारी बूढ़ी दादी इस चीज से तंग आ चुकी थी। तो गांव के कुछ लोगो ने उन्हें बताया कि ये उसी बंदर का किया धरा है जो लोगों को खूब परेशान करता है। ये सुनकर दादी खूब गुस्सा होती हैं। अगले दिन दादी काम पे नही जाती है। वह अपने घर में ही एक मोटा सा डंडा लेकर एक कोने में छिप जाती है। और छिपकर बंदर का इंतजार करने लगती है।
रोज की तरह आज भी बंदर मस्ती करते हुऐ दादी के घर में घुस जाता है जैसे ही वो रोटियां खाने लगता है वैसे ही दादी पीछे से उसके ऊपर डंडे से मारती है। डंडे की मार पड़ते ही बंदर तिलमिला जाता हैं और गुस्से में आग बबूला हो जाता है। वह दादी से डंडा छीन लेता है और दादी को भी डंडे से मारता है। और दादी को अपने हाथों से धक्का दे कर गिरा कर भाग जाता है। बेचारी बूढ़ी दादी को बहुत चोट लग जाती है।


ये सब होने से दादी एक बात तो समझ गई थी कि वो बंदर से इस प्रकार बलपूर्वक नहीं जीत सकती है।

तब उनके दिमाग में एक युक्ति सूझती है। अगले दिन दादी ढेर सारा मिर्ची पिसती हैं और आटा में मिला देती है ।


और रोज की तरह आज भी रोटियां बनाई और चूल्हे पर ढक कर काम करने चली गई। आज भी बंदर आया और सीधा दादी के घर में घुस गया। रोज की तरह आज भी वह दादी की सारी रोटियां खाने लगा। रोटियां खाते ही उसको मिर्ची लगने लगी, मिर्ची इतनी तीखी थी कि उसके आंखों से आंसु गिरने लगें और उसके कान से धुआं निकलने लगा। इतना तीखा बंदर बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था और इतना तीखा खाकर वो रोने लगा।

और इधर उधर गिरते पड़ते, जैसे तैसे करके वो एक तालाब के पास पहुंचा और पानी पिया। ढेर सारा पानी पीने के बाद उसे थोड़ा सा आराम मिला। बंदर को उसके किए का सबक मिल गया था और उसी समय बंदर ने दुबारा से लोगों को ना परेशान करने की कसम खाई, और उस गांव को छोड़ कर जंगल की तरफ चला गया।

सीख: कभी कभी हमारे सामने ऐसी भी परिस्थितिया बन जाती है जहां पर हम सामने वाले से बलपूर्वक नहीं जीत सकते है परंतु हम अपना दिमाग लगा कर के उस सामने वाले को हरा सकते है।

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