आरव का बगीचा । Arav ka bageecha
आरव और उसका हरा दोस्त
एक समय की बात है सोहनपुर नामक एक गांव मै एक छोटा सा बच्चा रहता था उसका नाम आरव था। आरव बहुत ही हसमुख ओर चंचल संभव का था । वह अपने से बड़े छोटे सबसे प्यार से बोलता से । आरव की एक खास बात ये थी कि उससे पेड़ पौधे , बगीचे, जानवर , बहुत ही जड़ पसंद थे उसे पेड़ो की हरियाली अपने तरफ अट्रैक्ट करती थी । उससे जानवरों के साथ भी खेलना बहुत पसंद था ।
आरव जहां रहता था उसके घर के बगल मै एक खाली मैदान था जहां पर वह अपनी दादी के साथ अक्सर टहलने जाया करता था ।
दादी ने उसे बताया कि पहले ये खाली मैदान नही था । पहले यहां पेड़ पौधे हुआ करते थे बड़े बड़े आम , अमरूद , नीम के पेड़ होते थे । रोज शाम को बच्चे यहां खेलने आते थे और बड़े बुजुर्ग यह टहलने आते थे । फिर फिर धरी धरी आस पास के लोगों ने यह के पेड़ काट दिए ओर आज ये इस तरह से खाली मैदान बन गया । दादी ये सब बताते हुए उदास सी हो गई यह देख आरव ने कहा कोई बात नहीं हम फिर से इस खाली मैदान को हर भरा कर देंगे । यह सुनकर दादी आरव की तरफ देखती है और एक प्यारी सी मुस्कान देके आगे बढ़ जाती है।
अगले दिन आरव स्कूल जाता है आज स्कूल मैं पर्यावरण दिवस मनाया जा रहा था । आरव की क्लास टीचर जिनका नाम मिस रिया था । वो बच्चों से एक सवाल पूछती है । को बताओ बच्चों पेड़ से हमे क्या क्या मिलता है और वो हमारे लिए किस प्रकार उपयोगी है इस बात पर क्लास के बच्चे जवाब देते है , फल , फूल , लकड़ी । फिर मिस रिया कहती है – बिल्कुल सही बच्चों , पर पेड़ पौधे इसके अलावा भी हमको ओर बहुत कुछ देगे है जैसे – ऑक्सीजन , छाया , पशु पक्षियों को घर , ओर दवाइयां भी बनाई जाती है । यह सब के साथ साथ पेड़ पौधे हमारे जलवायु और मानसून मै बदलवा मै सहायक होते है ।
पेड़ पौधे से इतने सारे फायदे व उनके इतने सारे उपयोग सुनकर आरव के मन ही मन विचार करता हैं कि वो आवश्य ही पेड़ लगाएगा ओर उनकी देख भाल करेगा ।अगले दिन आरव सुबह जल्दी उठता है। आज दिन रविवार था। वह अपनी गुल्लक तोड़ता है जिसमें वो अपने बचे पैसे इक्कठे करके रखता था।
गुल्लक से निकले पैसे लेकर वह बाजार जाता है और वह से एक नन्हा सा आम का पौधा खरीद लाता है। आम का पौधा बहुत ही नाजुक और छोटा सा होता है।
वह पौधे को बगीचे में लेकर जाता है और साथ में एक कुदाल भी लेकर जाता है। आरव ने कुदाल से धीरे धीरे मिट्टी खोदा और फिर पेड़ को वही लगा दिया।
उसने पौधे में पानी डाला और प्यार से सहलाते हुए कहता है कि तुम आज से मेरे दोस्त हो। मै तुम्हे रोज पानी दूंगा और तुम्हारी देख भाल करूंगा ताकि तुम जल्दी जल्दी बड़े हो जाओ और सबको छाया दो। हमारे वातावरण को भी शुद्ध करो और हमें खाने के लिए फल भी दो।
आरव को पौधे से बाते करता देख कुछ बच्चे उसका मजाक उड़ाते है। और कहते है कि आरव क्या पेड़ भी बाते करते है क्या?
इसपर आरव शांत भाव से मुस्कुराते हुए बोला ये पौधा बोल नहीं सकता तो क्या हुआ सुन तो सकता है ना। आरव की यह बात सुनकर सभी बच्चे हंसने लगते है।
अगले रविवार को आरव अपनी दादी से कुछ पैसे मांगता है पौधे खरीदने के लिए। दादी उसे पैसे दे देती है। आरव उन पैसों से एक अमरूद का पौधा लाता है और ले जाकर उसे बगीचे मे लगा देता है। ऐसे ही धीरे धीरे करके आरव ने बगीचे में ढेर सारा पौधा लगा दिया। वह उनकी देख भाल करता था और उन्हें रोज पानी देता था।
उनके आसपास ढेर सारे कांटे लाकर रख दिया ताकि कोई जानवर उन्हें ना चर ले। धीरे धीरे वो पौधे बड़े होने लगे और बगीचे में खुद से कुछ पौधे उग आए।
आरव अब बड़ा हो चुका है। उसकी उम्र 21 वर्ष हो गई है। अब उसके दोस्त जो उसका मजाक बनाते थे वो उसकी तारीफ करते थे कि हा यार आरव! तूने तो कमाल कर दिया। हम पहले तेरा कितना मजाक उड़ाते थे पर आज तो तेरे लगाए पेड़ो से तो कितनी अच्छी छाया मिलती है।
और तो और ढेर सारे फल भी मिलते है।
लोग अब उस बगीचे को " आरव का बगीचा" के नाम से बुलाते थे। शाम को बच्चे वहां खेलने आते थे। और गर्मी में जब खूब धूप होती हैं तो लोग उसके नीचे छाया में आराम करते थे। आरव की दादी ये सब देख कर बहुत खुश होती है। और आरव को खूब आशीर्वाद देती है।
सीख: हमे पेड़ पौधे लगाने चाहिए। ये हमारे लिए बहुत ही ज्यादा उपयोगी है, ये है तभी हमारा जीवन संभव है अन्यथा हमारे लिए बड़ी समस्या हो सकती है।
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