लालच बुरी बला
लालच बुरी बला
बहुत समय पहले की बात है। एक सुंदर और शांत गांव में जिसका नाम रामपुर था, में राजू नाम का एक गरीब किसान रहता था। राजू मेहनती, ईमानदार, और संतोषी स्वभाव का था। उसके पास थोड़ी सी जमीन थी जिसने वह अनाज और सब्जियां उगाकर किसी तरह अपना गुजारा करता था। गांव के लोग उसे पसंद करते थे क्योंकि वह कभी किसी से ईर्ष्या नहीं करता था। और हमेशा मुस्कुरा के बात करता था।राजू ने बर्तन उठाया और उसमें देखा कि एक चिट्ठी रखी हुई थी। चिट्ठी में लिखा था " यह कोई साधारण बर्तन नहीं है यह हर सुबह एक सोने का सिक्का देगा, लेकिन एक शर्त है –सिक्का मांगते हुए मन में लालच, ईर्ष्या, द्वेष ऐसी भावनाएं नहीं होनी चाहिए जो सिक्का मिले उससे जरूरत मंदो को मदद करना तथा उस सिक्के का गलत उपयोग नहीं करना होगा। और अगर तुमने किसी भी दिन इससे एक से अधिक सिक्के मांगे तो यह हमेशा के लिए अपना जादू खो देगी।
राजू को तो अपनी आंखों पर तो बिस्वास नहीं हो रहा था। लेकिन फिर उसने बर्तन को चुपचाप ले जाकर आलमारी में रख दिया। अगली सुबह जैसे ही उसने बर्तन में झांका तो वाकई में उसमें एक चमचमाता सोने का सिक्का पड़ा हुआ था। उसने सोचा एक सिक्का रोज ही मिले यही बहुत है। इससे मै अपनी गरीबी भी मिटाऊंगा और औरों की मदद भी करूंगा।
अब राजू के दिन बदलने लगे। वह पुराने कपड़ो की जगह नए कपड़े पहनने लगा, टूटी छत की मरम्मत करवाई और घर के पास एक छोटा सा बगीचा बनवाया। उसने गांव के मंदिर में दान किया और जरूरत मंदो की मदद भी करने लगा। लोग उसकी खूब प्रशंसा करते थे। और कहते थे कि राजू जैसा इंसान बनना चाहिए। जो मेहनत भी करता हो और अपना घर भी संभालता हो और दूसरो की मदद भी करता हो।
लेकिन अब धीरे धीरे राजू का मन बदलने लगा। वो सोचने लगा कि जो पैसे मै सबकी मदद करने में लगा देता हूं , अगर वो भी पैसा बचाने लंगू तो अमीर बन जाऊगा। और फिर उसने सोचा जिनको पैसे की जरूरत हो वो मेहनत और नाम करके कमाए भला मैं क्यूं दूं किसी को पैसे।
एक दिन राजू बाजार गया तो देखा कि उसके बचपन का मित्र मोहन , जो अब एक बड़ा व्यापारी बन चुका है, बड़ी गाड़ी से घूम रहा है। और गाड़ी को ड्राइवर चला के ले जा रहा है। जब मोहन को गाड़ी से बाहर उतरना होता है तो ड्राइवर ही गाड़ी खोलता था और ड्राइवर ही बंद भी करता था। इतना सब ठाट बाट देख कर राजू की आंखे चौंधिया गई। उसने सोचा अगर मै भी अपना सारा पैसा बचाने लगूंगा जो दूसरों की मदद करने में लगा देता हुं , तो मैं भी एक दिन ऐसे ही गाड़ी में घूमूंगा। उसने सोचा अगर मेरे पास में एक दिन में दो तीन सिक्के हो जाएं तो मैं भी जल्दी अमीर बन जाऊंगा। मुझे इतनी सी छोटी सी जिंदगी में क्यों धीरे धीरे चलना चाहिए।
उस रात राजू ने निर्णय लिया कि बर्तन से एक से अधिक सिक्के मांगेगा। अगली सुबह वह बर्तन के सामने गया और बोला, मुझे आज तीन सिक्के दो।
तभी बर्तन से आवाज आई – तुम अब लालची और स्वार्थी हो गए हो , तुम्हारे मन में लालच और स्वार्थ जैसी भावनाएं आ गई है । अब तुम्हे कुछ भी नहीं मिलेगा। वैसे तो सबको कठिन परिश्रम करने के बाद ही कुछ मिलता है। पर तुम्हारा दिल साफ और ईमानदार था और तुम्हारे मन में परोपकार की भावना थी। इसलिए मैं तुम्हे मिला था परंतु अब तुम्हारे अंदर अच्छी भावनाएं खत्म हो कर बुरी भावनाएं जन्म लेने लगी है। इसलिए अब मेरा प्रभाव खत्म हो रहा है। यदि जीवन में अब तुम कुछ चाहते हो तो सच्चे दिल से और कठिन परिश्रम से काम करना तभी तुम्हे सफलता मिलेगी।
और अगले ही पल में बर्तन काला पड़ गया। सिक्के गायब हो गए। और बर्तन से एक चमकीली सी रोशनी निकली जो आसमान की तरफ उड़ गई। राजू ये सब खड़े होकर देख रहा था। वह अपने किए पर बहुत पछता रहा था। उसे समझ आगया था कि उसमें बुरी भावनाएं आ गई थी। वह स्तब्ध होकर कुछ देर वही खड़ा रहा। उसके हाथ से वो जादुई चीज हमेशा के लिए चली गई थी। अब उसके पास न जादू था न बर्तन न रोज का सिक्का। वह पछताया तो बहुत पर अब कुछ किया नहीं जा सकता था।
राजू की हालत अब फिर पहले जैसे हो गई थी। लेकिन उसने निर्णय किया कि वह फिर से पहले की तरह सच्चे और साफ दिल वाला इंसान बनके रहेगा। वह दूसरो की मदद भी करेगा और किसी से भी ईर्ष्या व द्वेष की भावना नहीं रखेगा। और वह अपने खेत में भी पहले से अधिक मेहनत करेगा। और ईमानदारी और नेकी के साथ अपना जीवन यापन करेगा। अब वह दूसरो से भी यही कहता था कि जो तुम्हारे पास है उसी में संतोष करो। लालच कभी किसी का भला नहीं करती है।
सीख– लालच इंसान को अंधा बना देती है। जब हम जरूरत से ज्यादा पाने की कोशिश करते तो हम वह भी खो बैठते है जो हमारे पास होता है। संतोष और धैर्य से ही सच्ची खुशी मिलती है। यह कहानी हमें सिखाती है कि लालच बुरी बला होती है।










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